December 5, 2010

हम के ठहरे अजनबी

हम के ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बाद
फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद

मुदारातों - courtesies

कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्जे की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

सब्जे - garden

थे बहुत बे-दर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थीं बहुत बे-महर सुबहें महरबां रातों के बाद


दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते, मुनाजातों के बाद

मुनाजातों - prayers

उनसे कहने जो गए थे फैज़ जां-सदका किये
अनकही ही रह गयी वो बात सब बातों के बाद

जां-सदका - On sake of life


फैज़ अहमद फैज़

1 comment:

वीना श्रीवास्तव said...

इतनी बढ़िया ग़ज़ल है कि बस तबियत खुश हो गई....बहुत अच्छी ग़ज़लें आपने चुनी हैं ...हालांकि इन नामचीन शायरों का हर शेर दिल को छुने वाला है.....