December 5, 2010

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले


अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क में घर से पहले।

चल दिए उठ के सू-ए-सहर-ए-वफ़ा कू-ए-हबीब
पूछ लेना था किसी खाक बसर से पहले।

इश्क पहले भी किया हिज्र का गम भी देखा
इतने तड़पे हैं ना घबराए न तरसे पहले।

जी बहलता ही नहीं अब कोई सा'अत कोई पल
रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले।

हम किसी दर पे ना ठिठके ना कहीं दस्तक दी
सैकड़ों दर थे मेरी जान तेरे दर से पहले।

चाँद से आँख मिली जी का उजाला जागा
हम को सौ बार हुई सुबह सहर से पहले।


इब्ने इंशा

No comments: