December 4, 2010

ये ना थी हमारी किस्मत

ये ना थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता ,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.

तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना
कि खुशी से मर ना जाते अगर ऐतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना कि बांधा था अहद बोदा
कभी तू ना तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
यह ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासे
कोई चारासाज़ होता, कोई गमगुसार होता


रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर ना थमता
जिसे गम समझ रहे हो ये अगर शरार होता

गम अगरचे जां-गुसिल है पर कहाँ बचें कि दिल है
गम-ए-इश्क अगर ना होता गम-ए-रोज़गार होता

कहूं किस से मैं कि क्या है, शब्-ए-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों ना गर्क-ए-दरिया
ना कभी जनाज़ा उठता, ना कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सकता कि यगना है वो यकता
अगर दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ, ये तेरा बयां ग़ालिब
तुझे हम वली समझते जो ना बादा-ख्वार होता



ग़ालिब

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