सभी कुछ है तेरा दिया हुआ
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कल्फतें,
कभी सोहबतें कभी फुर्कतें कभी दूरियाँ कभी कुर्बतें।
ये सुखन जो हमने रकम किये ये हैं सब वर्क तेरी याद के
कोई लम्हा सुबह-ए-विसाल का, कई शाम-ए-हिज्र की कुर्बतें।
जो तुम्हारी मान लें नासीहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या
ना किसी उदू की अदावतें ना किसी सनम की मुरव्वतें।
मेरी जान आज का गम ना कर, के ना जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें।
फैज़ अहमद फैज़
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