January 23, 2011

अब वही हर्फ़-ए-जनून

अब वही हर्फ़--जुनून सब की जुबां ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है

आज तक शैख़ के इकराम में जो शय थी हराम
अब वही दुश्मन--दीन राहत--जान ठहरी है

है खबर गर्म की फिरता है गुरेजां नासेह
गुफ्तगू आज सर--कू--बुतां ठहरी है

है वही आरिज--लैला वही शीरियन का दहन
निगाह--शौक घड़ी भर को यहाँ ठहरी है

वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबक गुजरी थी
हिज्र की शब है तो क्या सख्त-गराँ ठहरी है

बिखरी एक बार तो हाथ आई कहाँ मौज--शमीम
दिल से निकली है तो कब लब पे फुगां ठहरी है

दस्त--सय्याद भी आज़िज है कफ--गुलचीं भी
बू--गुल ठहरी ना बुल-बुल की जबां ठहरी है

आते आते यूँ ही दम भर को रुकी होगी बहार
जाते जाते यूँ ही पल भर को खिजां ठहरी है

हम ने जो तर्ज़--फुगां की है कफस में इजाद
'फैज़' गुलशन में वो तर्ज़--बयान ठहरी है


फैज़ अहमद फैज़