हम के ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बाद
फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद
मुदारातों - courtesies
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्जे की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
सब्जे - garden
थे बहुत बे-दर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थीं बहुत बे-महर सुबहें महरबां रातों के बाद
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते, मुनाजातों के बाद
मुनाजातों - prayers
उनसे कहने जो गए थे फैज़ जां-सदका किये
अनकही ही रह गयी वो बात सब बातों के बाद
जां-सदका - On sake of life
फैज़ अहमद फैज़
1 comment:
इतनी बढ़िया ग़ज़ल है कि बस तबियत खुश हो गई....बहुत अच्छी ग़ज़लें आपने चुनी हैं ...हालांकि इन नामचीन शायरों का हर शेर दिल को छुने वाला है.....
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