December 5, 2010

अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं


अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे़र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं।

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं।

आँखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे
ये ख़ाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं।

देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़कत दीप जलाने के लिए हैं।

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहजीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं।

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं।


जां निसार अख्तर



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