January 3, 2013

गजल



आईनें हैं, चेहरों की खबर रखते हैं
चेहरे, दिल के रंगों का असर रखते हैं

किस पल सियाह से सुर्ख हो जायें  
रंग तेरी आँखों पे नजर रखते हैं

सख्त हैं हाल गुलशन में मगर फिर भी
फूल वो हैं जो काँटों में गुज़र रखते हैं

रविन्द्र सिंह मान

February 17, 2012

जुस्तजू जिस की थी -शहरयार


जुस्तजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

तुझ को रुसवा न किया खुद भी पशेमां न हुए
इश्क की रस्म को इस तरह निभाया हम ने

कब मिली थी कहाँ बिछडी थी हमें याद नहीं
जिंदगी तुझ को बस खाब में देखा हम ने

अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हम ने 


अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार

February 16, 2012

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता- शहरयार



कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
जुबां मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार

जिंदगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है- शहरयार


जिंदगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक्शे के मुताबिक ये ज़मीं कुछ कम है

तसव्वुर= कल्पना
 

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफी है यकीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ जियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार

किस-किस तरह से मुझ को ना रुसवा किया गया



किस-किस तरह से मुझ को ना रुसवा किया गया
गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया

निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में
भूले से ही सुकूत के सेहरा में आ गया

जरस = घंटी
सुकूत = शान्ति, चुप्पी

क्यों आज उस का ज़िक्र मुझे खुश ना कर सका
क्यों आज उस का नाम मेरा दिल दुखा गया

इस हादसे को सुन के करेगा यकीन कोई
सूरज को ए़क झोंका हवा का बुझा गया

  
अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार