May 10, 2008

चाक-ए-गिरेबां की तलाश


दिल के ऐवान में लिए गुल्शुदा शम्मों की कतार
नूर-ए-खुर्शीद से सहमे हुए, उकताए हुए

हुस्न-ए-महबूब के सय्याल तसव्वुर की तरह
अपनी तारीकी को भैंचे हुए, लिपटाए हुए


गायत-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ, सूरत-ए-आगाज़-ओ-म'आल
वही बेसूद तजस्सुस, वही बेकार सवाल


मुज़्महिल सा'अत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से
याद-ए-माज़ी से गमीन, दहशत-ए-फरशा से निदाल


तिशना-अफ्कार जो तस्कीन नहीं पाते हैं
सोखता अश्क जो आंखों में नहीं आते हैं
एक कड़ा दर्द जो गीत में ढलता ही नहीं
दिल के तारीक शिगाफों से निकलता ही नहीं


और एक उलझी हुई मौहूम सी दरमां की तलाश
दश्त-ओ-ज़िन्दां की हवस , चाक-ए-गिरेबां की तलाश