May 2, 2008

गालिब

जौर से बाज़ आये पर बाज़ आयें क्या
कहते हैं हम तुझ को मुह दिखलायें क्या।

रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमां
हो रहेगा कुछ ना कुछ घबरायें क्या।

लाग हो तो उस को हम समझें लगाव
जब न हो कुछ भी तो धोखा खाएं क्या।

हो लिए क्यूं नामा-बर के साथ साथ,
या रब अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या।

मौज-ऐ-खून सर से गुज़र ही क्यूं ना जाए
आस्तान-ऐ-यार से उठ जाएं क्या।

उम्र भर देखा किए मरने की राह
मर गए पर देखिये दिखलायें क्या।

पूछते हैं वो की गालिब कौन है
कोई बतलाये की हम बतलायें क्या।

ग़ालिब

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