May 18, 2008

इंतिज़ार का मौसिम

रविश-रविश है वही इंतिज़ार का मौसिम
नहीं है कोई भी मौसिम बहार का मौसिम

गिरां है दिल पे गम-ए-रोजगार का मौसिम
है आ़जमाइश-ए -हुस्न-ऐ-निगार का मौसिम

खुशा नजारा-ए-रुखसार-ए-यार कि साअत
खुशा करार-ए-दिल-ए-बेकरार का मौसिम

हदीस-ए-बादा-ओ-साकी नहीं, तो किस मसरफ
खिराम-ए-अब्र-ए-सर-ए-कोहसार का मौसिम?

नसीब सोहबत-ए-यारां नहीं, तो क्या कीजे
ये रक्स-ए-साया-ए-सर्व-ओ-चिनार का मौसिम?

ये दिल के दाग तो दुखते थे यूँ भी, पर कम कम
कुछ अब के और है हिजरां-ए-यार का मौसिम

यही जूनून का, यही तौक-ओ-दार का मौसिम
यही है जब्र, यही इख्तियार का मौसिम

कफ़स है बस में तुम्हारे, तुम्हारे बस में नहीं
चमन में आतिश-ए-गुल के निखार का मौसिम

सबा की मस्त खिरामी तह-ए-कमंद नहीं
असीर-ए-दाम नहीं है बहार का मौसिम

बला से, हम ने न देखा तो और देखेंगे
फुरोग़-ए-गुलशन-ओ-सौत-ए-हज़ार का मौसिम

फैज़ अहमद फैज़

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