May 25, 2008

दिल से जिगर तक

एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवां है आज
पिघला हुआ रगों में इक आतिश-फिशां है आज

जू-ए-दर्द = दर्द की नदी
आतिश-फिशां = ज्वालामुखी

लब सी दिए हैं ता न शिकायत करे कोई
लेकिन हर एक ज़ख्म के मुँह में जबां है आज

तारीकियों ने घेर लिया है हयात को
लेकिन किसी का रू-ए-हसीं दरमि्याँ है आज

तारीकियों = अंधेरों
रू-ए-हसीं = सुंदर चेहरा

जीने का वक्त है यही मरने का वक्त है
दिल अपनी जिंदगी से बहुत शादमां है आज

शादमां= खुश

हो जाता हूँ शहीद हर अहल-ए-वफ़ा के साथ
हर दास्तान-ए-शौक़ मेरी दास्ताँ है आज

अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा करने वाला
दास्तान-ए-शौक़ = प्रेम कि कहानी

आए हैं किस निशा़त से हम क़त्लगाह में
ज़ख्मों से दिल है चूर, नज़र गुल-फिशां है आज

निशा़त= खुशी
क़त्लगाह= वध स्थल
गुल-फिशां = फूल फैलाने वाली

जिन्दानियों ने तोड़ दिया ज़ुल्म का गुरूर
वो दबदबा, वो रौब-ए-हुकूमत कहाँ है आज


जिन्दानियों= कैदीयों


अली सरदार जाफरी








No comments: