May 17, 2008

गालिब

दरखूर-ऐ-कहर - ओ- गजब जब कोई हमसा ना हुआ
फिर ग़लत क्या है की हमसा कोई पैदा ना हुआ

बंदगी में भी वो आज़ादा-ओ-ख़ुद-बीन हैं कि हम
उल्टे फिर आए दर-ऐ-काबा अगर वा ना हुआ

सब को मक़बूल है दावा तेरी यकताई का
रू-ब-रू कोई बुत-ऐ-आइना-सीमा ना हुआ

कम नहीं नाज़िश-ऐ-हमनामी-ऐ-चश्म-ऐ-खूबाँ
तेरा बीमार बुरा क्या है गर अच्छा ना हुआ

सीने का दाग है वो नाला कि लब तक ना गया
ख़ाक का रिज़्क़ है वो क़तरा कि दरिया ना हुआ

नाम का मेरे है जो दुःख कि किसी को ना मिला
काम में मेरे है जो फितना कि बर-पा ना हुआ

हर बुन-ऐ-मू से दम-ऐ-ज़िक्र ना टपके खून-नाब
हमज़ा का किस्सा हुआ, इश्क़ का चर्चा ना हुआ

कतरे में दिजला दिखाई ना दे और जुज़्व में कुल
खेल लड़कों का हुआ, दीदा-ऐ-बीना ना हुआ

थी ख़बर गर्म कि गालिब के उड़ेंगे पुरज़े
देखने हम भी गए थे पर तमाशा ना हुआ

गालिब