मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बनके दगा ना दे,
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जां-वलब, मुझे ज़िंदगी की दुआ ना दे।
मेरे दाग-ए-दिल से है रौशनी, उसी रौशनी से है ज़िंदगी,
मुझे डर है अये मेरे चारागर, ये चराग तू ही बुझा ना दे।
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर,
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा ना दे।
मेरा अज्म इतना बलंद है के पराए शोलों का डर नहीं,
मुझे खौफ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला ना दे।
वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुबू, अरे ओ 'शकील' कहां है तू,
तेरा जाम लेने को बज़्म मे कोई और हाथ बढ़ा ना दे।
शकील बदायूनी
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