May 11, 2008

मोहब्बत में हार के

दोनों जहाँ तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ऐ-गम गुजार के

वीरान है मैकदा खुम-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए के रूठ गए दिन बहार के

इक फुरसत-ऐ-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले परवर-दिगार के

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल फरेब हैं गम रोज़गार के

भूले से मुस्करा तो दिए थे वो आज 'फैज़'
मत पूछ वल-वले दिल-ऐ-ना-कर्दाकार के

फैज अहमद फैज़