हश्र के दिन मेरी चुप का माजरा,
कुछ न कुछ तुम से भी पूछा जाएगा।
हफीज जालंधरी
क्या क्यामत है शब-ऐ-वस्ल खामोशी उसकी,
जिसकी तस्वीर को भी नाज है गोयाई* का।
गोयाई = बोलने का
रियाज़ खैराबादी
इफ्शां-ऐ-राज*, शाने-वफ़ा, इमि्तहाने-सब्र**,
आज एक खामोशी ने बड़े हक़ अदा किये।
*= रहस्य बताना,
**= धर्य का इम्तिहान
आरजू लखनवी
हश्र भी गुजरा , हश्र में भी ये सोच के हमने कुछ न कहा,
गम की हिकायत* कौन सुनेगा,गम की हिकायत क्या कहिये ।
*= कहानी
फा़नी
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