March 16, 2008

राजीव खन्ना

लोग लेते हैं लुत्फ़ मेरे तमाशा होने का,
देख तेरी मोहब्बत ने क्या इनाम दिए हैं मुझको

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वह आवाज देते हैं,बुलाते हैं अब हमें,
नादाँ हैं कोई समझाये की कब्र से जवाब कौन दे।

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उनकी आंखो से छलकती है मय की मस्ती,
लोग समझते हैं की हम मैखाने से आए हैं।

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ख़बर दे गए जमाने को शरमा के तुम,
लोग समझ गए की हमारा तुमसे कुछ रिश्ता है।

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सब पूछते हैं मुझ से इस दर्द का सबब,
तू बता किस अंदाज से तेरा नाम बयां करुं।

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सब समझते हैं के मैं इश्क का मारा हूँ
हाँ , अनजान हैं,
के उन्होंने अभी मेरा महबूब नही देखा ।

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ये किस्से हैं ना रांझे के, न फरहाद की बातें,
ये बातें हैं हमारी बातें - तुम्हारी बातें।

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यूँ ही कम है ज़िंदगी मोहब्बत के लिए ,
रूठ कर वक्त गवाने की ज़रुरत क्या है

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बिना शुरू किए उसने अंजाम लिख दिया
उसने किताब पे अपनी , मेरा नाम लिख दिया

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उठ के मत चले जाना
तुमसे रोशन कोना-कोना है,
ज़िंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना और तुमको खोना है।



राजीव खन्ना





2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया लिखा है-

उठ के मत चले जाना
तुमसे रोशन कोना-कोना है,
ज़ींदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना और तुमको खोना है।

अमिताभ मीत said...

यूँ ही कम है जींदगी मोहब्बत के लीये,
रूठ कर वक्त गवाने की ज़रुरत क्या है
वाह ! वाह ! क्या बात है.