March 6, 2008

अभी - अभी

सब्र कहता है कि रफ्ता-रफ्ता मिट जाएगा दाग,
दिल कहता है की बुझने की ये चिंगारी नही।

यास चंगेजी

खुश भी हो लेते हैं तेरे बेकरार,
गम ही गम हो ,इश्क में ऐसा नही।

फिराक गोरखपुरी

इश्क में खाब का ख्याल किसे,
लगी आँख ,जब से आँख लगी।

मीर मोहम्मद हयात

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले जालिम,
रस्म--दुनिया भी है, मौका भी है, दस्तूर भी है।


कह दो इन हसरतों को कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिल--दागदार में।

उमर--दराज मांग कर लाये थे चार दिन,
दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में।

बहादुर शाह ज़फर

कलेजे में हजारों दाग ,दिल में हसरतें लाखों,
कमाई ले चला हूँ साथ अपने जिंदगी भर की।

आगा शायर

जब मैंने कहा की मरता हूँ, मुंह फेर के बोले,
सुनते तो हैं पर इश्क के मारे नहीं देखे।

सादिक अली हुसैन

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।

मजरूह सुल्तानपुरी



हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है,
तुम ही कहो कि ये अंदाज़
--गुफ़्तगू क्या है।

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
खुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।


रही ना ताक़त--गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद से कहिये की आरज़ू क्या है।


हुआ है शाह का मुसाहिब,फिर है इतराता
वगरना शहर में गालिब की आबरु क्या है ।



रगों में दौड़ते फिरने के हम नही कायल,
जो आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है।

गालिब

मत पूछ क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे।

ईमान मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कुफ्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे।



गालिब

दो -चार लफ्ज़ कह के मैं खामोश हो गया,
वो मुस्करा के बोले,बहुत बोलते हो तुम।

बर्क़

जब तक जिये, बिखरते रहे,टूटते रहे,
हम साँस -साँस क़र्ज़ की सूरत अदा हुए।

निदा फाज़ली

ये और बात है की तआरुफ़ हो सके,
हम ज़िन्दगी के साथ बहुत दूर तक गए।

खुर्शीद अहमद

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