लिपटा मैं बोसा लेके तो बोले की देखिये,
ये दूसरी खता है वो पहला कसूर था।
अमीर मीनाई
वो भी मेरे पास से गुजरा इसी अंदाज से,
मैंने भी जाहिर किया,जैसे उसे देखा ना हो।
साबिर
दिल की मजबूरी भी क्या शै है की दर से अपने,
उसने सौ बार उठाया तो मैं सौ बार आया।
हसरत मोहानी
तुम ना आओगे तो मरने की हैं सौ तदवीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूं।
गालिब
आ गई तेरे बीमार के मुंह पे रौनक,
जान क्या जिस्म से निकली ,कोई अरमान निकला।
फानी
बात करनी तक तुम्हें आती ना थी,
ये हमारे सामने की बात है।
दाग़
है कुछ ऎसी ही बात जो चुप हूँ,
वरना क्या बात कर नहीं आती।
गालिब
जी बहुत चाहता है रोने को,
है कोई बात आज होने को।
मीर
तुम आये हो ना शब्-ए-इंतज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार-बार गुज़री है।
वो बात सारे फ़साने में जिसका जिक्र ना था,
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।
न गुल खिले हैं ,न उनसे मिले, न मय पी है,
अजीब रंग में अबके बहार गुजरी है।
फैज़
बहाने और भी होते जो जिंदगी के लिये,
हम एक बार तेरी आरजू भी खो देते।
मजरूह सुल्तानपुरी
दिल वो काफ़िर है की मुझ को न दिया चैन कभी,
बेवफा तू भी उसे ले के पशेमाँ होगा।
पशेमाँ= परेशान
कुर्बान अली
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