March 5, 2008
कुछ खास
दिल ले के मुफ्त कहते हैं कुछ काम का नहीं,
उल्टी शिकायतें हुईं , एहसान तो गया ।
दाग़
कत्ल और मुझ-से सख्त-जान का कत्ल,
तेग देखो, जरा कमर देखो।
अज़ीज़
एक रात आपने उम्मीद पे क्या रखा है,
आज तक हमने चिरागों को जला रखा है।
शा़ज
ऐ दोस्त हमने तर्क-ऐ-मोहब्बत के बावजूद,
महसूस की है तेरी ज़रुरत कभी-कभी।
नासिर काजमी
ईरादे बांधता हूँ , सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ,
कहीं ऐसा ना हो जाए, कहीं वैसा ना हो जाए।
हफीज जालंधरी
तुम मेरे लिये अब कोई इल्जाम ना ढूंढो ,
चाहा था इक तुम्हे यही इल्जाम बहुत है।
साहिर लुध्यानवी
इस 'नहीं' का कोई इलाज नहीं
रोज कहते हैं आप , 'आज' नहीं।
दाग़
इक उमर कट गई है तेरे इंतजार में,
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात
फिराक गोरखपुरी
खैर गुजरी की न पहुँची तेरे दर तक वरना,
आह ने आग लगा दी है जहां ठहरी है।
हसरत मोहानी
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक।
गालिब
वो आए बज्म में इतना तो 'मीर' ने देखा,
फिर उसके बाद चिरागों में रौशनी न रही।
मीर
आईना देख अपना सा मुंह ले के रह गए ,
साहब को दिल न देने पे कितना गरुर था।
गालिब
न जाने किस लिये उमीदवार बैठा हूँ,
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुजर भी नहीं।
फैज़
जो छुपाने की थी ,वो बात बता दी मुझको,
जिंदगी तूने बहुत सख्त सजा दी मुझको।
सुलेमान अख्तर
जब आप जा ही रहे हैं तो तकल्लुफ़ कैसा,
ये जरुरी तो नहीं हाथ मिलाया जाए।
स अ रज्जाक
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