March 25, 2008

बहार आई

बहार आई तो जैसे एक बार
लौट आये हैं फिर अदम से
वो ख़्वाब सारे, शबाब सारे
जो तेरे होंटों पे मर मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिए थे
निखर गएँ हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुश्क्बू हैं
जो तेरे उश्शाक का लहू हैं
उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाल-ए-अहवाल-ए-दोस्तां भी
खुमार-ए-आगोश-ए-महवशां भी
गुबार-ए-खातिर के बाब सारे
तेरे हमारे
सवाल सारे, जवाब सारे
बहार आई तो खुल गए हैं
नए सिरे से हिसाब सारे


'फैज़'

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