March 10, 2008

साहिर लुध्यानवी

तुमको ख़बर नहीं है मगर इक सादा लोह१ को,
बरबाद कर दिया तेरे दो दिन के प्यार ने।

१= सादा आदमी

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लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ऐ-उम्मीद,
लो अब कभी गिला ना करेंगे किसी से हम।

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किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे,
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमां ना कर सके।

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सजा का हाल सुनाएं ज़जा1 की बात करें,
खुदा मिला हो जिन्हे वो खुदा की बात करें।

हर एक दौर का मजहब नया खुदा लाया,
करें तो हम भी मगर किस खुदा की बात करें।

वफ़ा-शियार2 कई हैं ,कोई हसीन भी तो हो,
चलो फिर आज उसी बेवफा की बात करें।

१= अच्छे कर्मों का फल
२=वफ़ा करने वाले

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ये जमीन जिस कदर सजाई गयी,
जिन्दगी की तड़प बढाई गयी।

आईने से बिगड़ कर बैठ गए,
जिनकी सूरत जिन्हे दिखायी गई।

नस्ल दर नस्ल इंतजार रहा,
कसर1 टूटे ना बेनवाई२ गयी।

मौत पायी सलीब पर हमने ,
उमर बनबास में बितायी गई।

१= महल
२= गरीबी

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लब१ पे पाबंदी तो है, अहसास पे पहरा तो है,
फिर भी अहल-ऐ-दिल2 को अहवाल-ऐ-बशर3 कहना तो है।

बुझ रहे हैं एक एक करके अकीदों4 के दीये,
इस अंधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है।

१= बोलने
२= दिल वाले
३=आम आदमी का हाल
४=विश्वास

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बहुत घुटन है,कोई सूरत-ऐ-बयां१ निकले,
अगर सदा२ ना उठे,कम से कम फुगां३ निकले।

फकीर-ऐ-शहर४ के तन पर लिबास बाकी है,
अमीर-ऐ-शहर५ के अरमां अभी कहाँ निकले।

हकीकतें हैं सलामत तो ख़ाब बहुतेरे,
उदास क्यों हो जो कुछ ख़ाब रायगां६ निकले।

उधर भी खाक उड़ी है ,उधर भी जख्म पड़े,
जिधर से होके बहारों के कारवां निकले।

सितम के दौर में हम अहल-ऐ-दिल७ ही काम आए,
जबाँ पे नाज था जिनको वो बेजबान निकले।

१= बताने का तरीका
२=बुलंद आवाज
३=दबी आवाज
४= ग़रीबों
५= अमीरों
६= बेकार
७= दिल वाले

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मैं जिंदा हूँ ये मुश्तहर१ कीजिये,
मेरे कातिलों को ख़बर कीजिये।

जमीं सख्त है,आसमान दूर है,
बसर हो सके तो बसर कीजिये।

सितम के बहुत से हैं रद्द-ऐ-अमल२ ,
ज़रुरी नहीं चश्म-तर३ कीजिये।

१= बताना
२= प्रतिक्रिया
३= रोना

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तुम ना जाने किस जहाँ में खो गए,
हम भरी दुनिया में तनहा हो गए।

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अभी जिन्दां हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ खिल्वत१ में,
की अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने।
१= अकेले

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