जुस्तजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने
तुझ को रुसवा न किया खुद भी पशेमां न हुए
इश्क की रस्म को इस तरह निभाया हम ने
कब मिली थी कहाँ बिछडी थी हमें याद नहीं
जिंदगी तुझ को बस खाब में देखा हम ने
ए ‘अदा’ और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हम ने
अख़लाक़ मोहम्मद खान ‘शहरयार’
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