February 17, 2012

जुस्तजू जिस की थी -शहरयार


जुस्तजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

तुझ को रुसवा न किया खुद भी पशेमां न हुए
इश्क की रस्म को इस तरह निभाया हम ने

कब मिली थी कहाँ बिछडी थी हमें याद नहीं
जिंदगी तुझ को बस खाब में देखा हम ने

अदा और सुनाये भी तो क्या हाल अपना
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हम ने 


अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार

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