कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
जुबां मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता
अख़लाक़ मोहम्मद खान ‘शहरयार’
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