February 16, 2012

जिंदगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है- शहरयार


जिंदगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक्शे के मुताबिक ये ज़मीं कुछ कम है

तसव्वुर= कल्पना
 

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफी है यकीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ जियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

अख़लाक़ मोहम्मद खान शहरयार

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