November 15, 2010

जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है


जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है
मगर वो आज भी बरहम नहीं है

बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना
तेरी जुल्फों के पेच-ओ-ख़म नहीं है

बहुत कुछ और भी है जहां में
ये दुनिया महज गम ही गम नहीं है

मेरी बरबादियों के हम-नशीनों
तुम्हें क्या खुद मुझे भी गम नहीं है

अभी बज़्म-ए-तरब से क्या उठूँ मैं
अभी तो आँख भी पुरनम नहीं है

'मजाज़' एक बादाकश तो है यक़ीनन
जो हम सुनते थे वो आलम नहीं है


मजाज़ लखनवी

2 comments:

caprie said...

i cant read the writing but im eager to know what it says

caprie said...

photo of the writer this blog is so serious. smile pls.