November 15, 2010

हमारे दरम्यां ऐसा कोई रिश्ता नहीं था - परवीन शाकिर

हमारे दरम्यां ऐसा कोई रिश्ता नहीं था
तेरे शानों पे कोई छत नहीं थी
मेरे जिम्मे कोई आँगन नहीं था
कोई वादा तेरी ज़ंजीर-ए-पा बनने नहीं पाया
किसी इकरार ने मेरी कलाई को नहीं थामा
हवा-ए-दश्त की मानिंद
तू आज़ाद था
रास्ते तेरी मर्ज़ी के ताबे थे
मुझे भी अपनी तन्हाई पे
देखा जाए तो
पूरा तस्सरूफ़ था
मगर जब आज तू ने
रास्ता बदला
तो कुछ ऐसा लगा मुझ को
के जैसे तू ने मुझ से बेवफाई की



परवीन शाकिर

3 comments:

Sunil Kumar said...

खुबसूरत अहसास, बधाई

संजय कुमार चौरसिया said...

khoobsurat

वीना श्रीवास्तव said...

हमारे दरम्यां ऐसा कोई रिश्ता नहीं था
तेरे शानों पे कोई छत नहीं थी
मेरे जिम्मे कोई आँगन नहीं था

सुंदर पंक्तियां

http://veenakesur.blogspot.com/