जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है
जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है
मगर वो आज भी बरहम नहीं है
बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना
तेरी जुल्फों के पेच-ओ-ख़म नहीं है
बहुत कुछ और भी है जहां में
ये दुनिया महज गम ही गम नहीं है
मेरी बरबादियों के हम-नशीनों
तुम्हें क्या खुद मुझे भी गम नहीं है
अभी बज़्म-ए-तरब से क्या उठूँ मैं
अभी तो आँख भी पुरनम नहीं है
'मजाज़' एक बादाकश तो है यक़ीनन
जो हम सुनते थे वो आलम नहीं है
मजाज़ लखनवी
2 comments:
i cant read the writing but im eager to know what it says
photo of the writer this blog is so serious. smile pls.
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