दर्द से मेरा अब रिश्ता क्या है,
दर्द ही दर्द बाकी है अब दवा क्या है।
जेहन में गूंजते हैं हजारों नगमें,
जिसपे गाऊं वो साज़ बचा क्या है।
कहा बहुत कुछ हाल से अपने, मगर,
तुमने समझा ही नहीं माजरा क्या है।
इल्तजा, मिन्नतें, सजदा जिसके दर पे किया,
वो ईसा फकत ये बोला , तू चाहता क्या है।
मोहब्बत से यकीन मेरा उठ सा गया,
मोहब्बत कर के मगर कोई पाता क्या है।
डा राजीव
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