August 30, 2008
परछाईयों के पीछे पीछे - गुरमीत बराड़
साँस लेना भी कैसी आदत है
जिये जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आंखों में
पाँव बेहिस हैं, चलते जाते हैं
इक सफर है जो बहता रहता है
कितने बरसों से , कितनी सदियों से
जिये जाते हैं, जिये जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं
गुलज़ार
August 29, 2008
तजदीद -ऐ-वफ़ा का नहीं इमकान जानां
याद क्या तुझ को दिलाएं तेरा पैमां जानां।
तजदीद=renewal; इम्काँ =possibility;
जानां=dear one/beloved; पैमां=promise
यूं ही मौसम की अदा देख के याद आया है,
किस कदर जल्द बदल जाते हैं इन्सां जानां।
ज़िन्दगी तेरी अत्ता थी सो तेरे नाम की है,
हमने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानां।
अत्ता=given by;बसर=to live
दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी,
दिल कि क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानां।
फ़सुर्दा=sad/disappointed
अव्वल-अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर,
बिन पिए भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानां।
अव्वल-अव्वल=the very first
आख़िर आख़िर तो ये आलम है के अब होश नहीं,
रग -ऐ-मीना सुलग उठी के राग-ऐ-जाँ जानां।
रग=veins; मीना=wine-holder; जाँ=life
मुद्दतों से ये आलम न तवक्को न उम्मीद,
दिल पुकारे ही चला जाता है जानां जानां।
मुद्दतों=awhile;तवक्को=hope
हम भी क्या सादा थे हमने भी समझ रखा था,
गम-ऐ-दौरां से जुदा है गम-ऐ-जानां जानां।
गम-ऐ-दौरां=sorrows of the world
अब के कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ऐ-यारां जानां,
सर-बा-जानू है कोई सर-बा-गरेबां जानां।
सर-बा-जानू=forehead touching the knees
सर-बा-गरेबां=lost in worries
हर कोई अपनी ही आवाज से कांप उठता है,
हर कोई अपने ही साए से हिरासां जानां।
हिरासां=scared of
जिस को देखो वही जंजीर- बा- पा लगता है,
शहर का शहर हुआ दाखिल-ऐ-जिन्दां जानां।
जंजीर- बा- पा=feet encased in chains;जिन्दां=prison
अब तेरा जिक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए,
और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानां।
उन्वाँ=start of new chapter/title
हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे,
हम ने देखा ही ना था मौसम-ऐ-हिज्राँ जानां।
मौसम-ऐ-हिज्राँ=season of separation
होश आए तो सभी ख़ाब थे रेजा-रेजा ,
जैसे उड़ते हुए औराक़-ऐ-परेशां जानां।
रेजा-रेजा=piece by piece;औराक़-ऐ-परेशां =strewn pages of a book
अहमद फराज
August 27, 2008
आंसू - गुरमीत बराङ
August 26, 2008
तू मुझे इतने प्यार से मत देख
तेरी पलको के नर्म साए में
धूप भी चान्दनी सी लगती है
और मुझे कितनी दूर जाना है
रेत है गर्म, पांव के छाले
यू दमकते हैं जैसे अंगारे
प्यार कि ये नज़र रहे, न रहे
कौन दश्त-ऐ-वफ़ा में जाता है
तेरे दिल को ख़बर रहे न रहे
तू मुझे इतने प्यार से मत देख
अली सरदार जाफरी
August 18, 2008
AUF WIEDERSEHEN (Until we meet again!)
AUF WIEDERSEHEN
(Until we meet again!)
In memory of J.T.F.
Of the familiar words, that men repeat
At parting in the street.
Ah yes, till then! but when death intervening
Rends us asunder, with what ceaseless pain
We wait for the Again!
The friends who leave us do not feel the sorrow
Of parting, as we feel it, who must stay
Lamenting day by day,
And knowing, when we wake upon the morrow,
We shall not find in its accustomed place
The one beloved face.
It were a double grief, if the departed,
Being released from earth, should still retain
A sense of earthly pain;
It were a double grief, if the true-hearted,
Who loved us here, should on the farther shore
Remember us no more.
Believing, in the midst of our afflictions,
That death is a beginning, not an end,
We cry to them, and send
Farewells, that better might be called predictions,
Being fore-shadowings of the future, thrown
Into the vast Unknown.
Faith overleaps the confines of our reason,
And if by faith, as in old times was said,
Women received their dead
Raised up to life, then only for a season
Our partings are, nor shall we wait in vain
Until we meet again!
Henry Wadsworth Longfellow
( German Poet)
Translated from german.
August 7, 2008
भूलने में बहुत याद आते हो तुम
August 6, 2008
दर्द ही दर्द है बाकी
दर्द ही दर्द बाकी है अब दवा क्या है।
जेहन में गूंजते हैं हजारों नगमें,
जिसपे गाऊं वो साज़ बचा क्या है।
कहा बहुत कुछ हाल से अपने, मगर,
तुमने समझा ही नहीं माजरा क्या है।
इल्तजा, मिन्नतें, सजदा जिसके दर पे किया,
वो ईसा फकत ये बोला , तू चाहता क्या है।
मोहब्बत से यकीन मेरा उठ सा गया,
मोहब्बत कर के मगर कोई पाता क्या है।
डा राजीव
August 5, 2008
वक्त आता रहा , वक्त जाता रहा
वक्त के साथ कदम मिलाता रहा
ख़ुद अपनी ही हस्ती मिटाता रहा
रिश्ते चलते रहे चाल अपनी
हर बाज़ी पे मैं मात खाता रहा
अब गिरा हूँ जो उठ ना सकूंगा कभी
जिस्म कैसे अभी तक उठाता रहा
मेरा रहबर मेरा खुदा तू ही था
कैसे मुझपे तू इल्जाम उठाता रहा
अपनी औकात से बढ़ कर चाहा तुझे
इश्क मुझको मेरी औकात बताता रहा
मैं रहा मुन्तजिर, राह खाली रहे
वक्त आता रहा ,वक्त जाता रहा
मैं चुप था, न मेरी खता थी कोई
तू ही इल्जाम सारे लगाता रहा
लाख चाह के मुझे भूलता ही नही
जाने कैसे तू हर पल भुलाता रहा
हर साँस पूछती थी तेरी खबर
हर धड़का तेरी याद दिलाता रहा
जान दे दी , अमानत उसी की ही थी
जिस्म बाकी रहा , साँस आता रहा
जिस कागज़ पे लिखा था नाम तेरा
कुरान समझा और माथे लगाता रहा
बाद तेरे ये हिसाब लगाता रहा।
डॉ राजीव
डा रविन्द्र सिंह मान
August 2, 2008
काश
August 1, 2008
हालात की बात करें
कुछ कहें जमाने की, कुछ इश्क की बात करें।
लम्हा-ए-फुरकत का कुछ हिसाब देखें,
बीते दिनों के कुछ जज्बात की बात करें।
हालात जुदा हैं बहुत ,जज्बात की बातों से,
जज्ब करें सच को, हालात की बात करें।
खाबों को दरकिनार करें, सपनों से परे देखें,
सचाई के दलदल में ,औकात की बात करें।
जज्बात के वो किस्से, अंजाम नहीं पहुंचे,
किस उम्मीद से फ़िर, आगाज की बात करें।
ताबूत दफन करें ,अपनी नाकामियों के,
फ़िर से जलायें दिए, गुलाल की बात करें।
जब भी करें ,करें राज दिलों पे हम ,
क्यूँ सोचें दुनिया फतह की ,क्यूँ ताज की बात करें।
आओ मिलें गले और भुला दे रंजिशें सभी ,
ना हिंदू की करें बात, ना मुसलमां की बात करें।
दिल की ये मुश्किल है, ये कल को नहीं भुलाता,
अक्ल ये कहती है, कि आज की बात करें ।
अरमानों का दरिया था , अश्कों में बहता था,
उम्मीद के सहरा में उसी बरसात की बात करें।
डा राजीव
डा रविन्द्र सिंह मान