April 22, 2008

मंजिल-ऐ-इश्क में

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया।


यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया।


कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला,
मंजिल-ऐ-इश्क में हर गाम पे रोना आया।


जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील',
मुझ को अपने दिल-ऐ-नाकाम पे रोना आया।

शकील बदायूनी

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