April 16, 2008

मीना कुमारी

चाँद तन्हा है आस्मान तन्हा,
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा।

बुझ गयी आस छुप गया तारा ,
थर-थराता रहा धुआं तन्हा।

हमसफ़र कोई गर मिले भी कोई ,
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा।

जिन्दगी क्या इसी को कहते हैं ,
जिस्म तनहा है और जान तन्हा।


जलती बुझती सी रौशनी के परे,
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा।


राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा।


मीना कुमारी