दिन
टेसू के फूलों वाले कब आयेंगे
पता नहीं
दरस-परस की
नहीं रही अब अपने बस की
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
आम-गुलमोहर
चैती-आल्हा कब गायेंगे
पता नहीं
आबोहवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महाहाट से
सपने साहू कब लायेंगे
पता नहीं
वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं है
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के
शीतल-जल मेघा कब छायेंगे
पता नहीं
दिन
टेसू के फूलों वाले कब आयेंगे
पता नहीं
कुमार रवीन्द्र
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