April 4, 2009

फासले ऐसे भी होंगे

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था ,

वो कि खुशबु की तरह फैला था मेरे चारसू,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर उसी की आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था,

अक्स तो मौजूद थे पर अक्स तन्हाई के थे
आईना तो था मगर उस में तेरा चेहरा ना था

उसने दर्द भी अपने अलहदा कर दिए
आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया ना था

ये सभी वीरानियाँ उसके जुदा होने से थी
आँख धुंधलाई हुयी थी शहर धुन्धलाया हुआ ना था,

याद करके और भी तकलीफ होती थी 'अदीम '
भूल जाने के सिवा कोई भी चारा न था।

शायर - अदीम हाश्मी
संकलित - राजीव खन्ना

3 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था ,

वाह..वाह...बहुत खूब.....!!

रात भर उसी की आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था,

लाजवाब.......!!

रविन्द्र जी बहुत बहुत शुक्रिया हाश्मी जी लाजवाब गज़लें पढ़वाने लिए .....!!

नरेश चन्द्र बोहरा said...

मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़लों में से एक है ये
शेयर करने के लिए शुक्रिया

नरेश चन्द्र बोहरा said...

मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़लों में से एक है ये
शेयर करने के लिए शुक्रिया