अब खुशी है ना कोई गम सताने वाला,
मुझको मिला हर ज़ख्म जमाने वाला।
अपना हाल सुनाता था जो सबसे पहले,
बेहाल हो गया है, ख़ुद हाल सुनाने वाला।
खलिश उठती है तो , गुमान होता है,
दर्द छुपा है अन्दर कोई सताने वाला।
मेरी किस्मत पे ना तरस खा ऐ दोस्त,
सबको मिलता नहीं साथ निभाने वाला।
अपने नाम का कोई और देख
अपने जैसा, अपनी हस्ती मिटाने वाला।
साथी मिलता नहीं, और मिल जाए कभी,
मौका मिलता नहीं, हाल सुनाने वाला।
ख्याल उलझे हुए हैं, और मैं खामोश,
है कहीं कोई तूफ़ान आने वाला।
मेरे अन्दर भटकता है दरिया,
नहीं आता मुकाम आने वाला।
मैं भी गुम हूँ, मेरे अल्फाज भी गुम ,
खो गया ख़ुद आवाज लगाने वाला
तलाशता हूँ समेटने को ख़ुद को,
नहीं मिलता पता, ठिकाने वाला
डा राजीव
डा रविन्द्र सिंह मान