July 2, 2011

तलाश

मुझे वो शहर पता नहीं
किस दिन मिलेगा?
 वो शहर
जो दूर क्षितिज से पार बसता है
जहाँ गहरे नीले पानी की झील में
सपनों के हंस तैरते हैं
जहाँ ज़िंदगी
गुलाब की तरह महकती है
जहाँ दरिया
कभी न खत्म होने का
गीत गाता है...
मैं कई जन्मों से
उस शहर की तलाश में हूँ
मुझे वो शहर पता नहीं
किस दिन मिलेगा?
मैं कई जन्मों से
उस शहर की तलाश में हूँ

उसको खोजते-खोजते
ज़िंदगी उस सपने की तरह हो गई है
 जिसमें हम बस
चलते ही जाते हैं
पहुँचते कहीं भी नहीं।
ज़िंदगी उस सपने की तरह हो गई है
जिसमें हम बस
चलते ही जाते हैं
पहुँचते कहीं भी नहीं।




कमल

No comments: