December 20, 2011

परछाईयाँ - साहिर लुध्यानवी




साहिर लुध्यानवी ने ये लंबी नज़्म 1956 में लिखी. ये उनकी लिखी बेहतरीन कृतियों में से ए़क है. उनके व्यक्तिगत जीवन में प्रेम के अभाव, युद्ध के इंसानियत पे नकारात्मक प्रभाव और गलत राजनितिक दिशा का बेहतरीन समावेश इस लंबी नज़्म में है. मुश्किल उर्दू शब्दों का यथासंभव हिंदी या अंग्रेजी अर्थ लिखने का प्रयास किया है.


जवान रात के सीने पे दूधिया आँचल
मचल रहा है किसी खाब-ए-मरमरीं की तरह
हसीन फूल, हसीं पत्तियां, हसीं शाखें
लचक रही हैं किसी जिस्म-ए-नाजनीं की तरह
फज़ा में घुल से गए हैं उफक के नरम खतूत
जमीन हसीन है, खाबों की सरजमीं की तरह

खाब-ए-मरमरीं= रेशमी( खूबसूरत) सपना
जिस्म-ए-नाजनीं= जवान लड़की के शरीर की तरह
उफक= क्षितिज
खतूत= रेखाएं

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं
कभी गुमान की सूरत, कभी यकीं की तरह
वो पेड़ जिनके तले हम पनाह लेते थे
खड़े हैं आज भी साकित किसी अमीं की तरह

तसव्वुरात= कल्पना
गुमान= शक्क, आशंका, Doubt
साकित= चुपचाप
अमीं= गवाह


इन्हीं के साये में फिर आज दो धकते दिल
खामोश होंटों से कुछ कहने-सुनने आये हैं
ना जाने कितनी कशाकश से, कितनी काविश से
ये सोते जागते लम्हे चुराके लाये हैं

कशाकश= संघर्ष, Struggle
काविश= प्रयास

यही फज़ा थी, यही रूत, यही जमाना था
यहीं से हमने मुहब्बत की इब्तदा की थी
धड़कते दिल से, लरजती हुई निगाहों से
हुजुर-ए-गैब में नन्ही सी इल्तजा की थी

इब्तदा= शुरुआत
लरजती= कांपती
हुजुर-ए-गैब= ईश्वर की सेवा में
इल्तजा= प्रार्थना


के आरजू के कँवल खिल के फूल हो जाएँ
दिल-ओ-नज़र की दुआएं कुबूल हो जाएँ

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

तुम आ रही हो जमाने की आँख से बच कर
नजर झुकाए हुए, और बदन चुराए हुए
खुद अपने कदमों की आहट से झेंपती, डरती
खुद अपने साये की जुम्बिश से खौफ खाए हुए

जुम्बिश= Movement

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

रवाँ है छोटी सी कश्ती हवाओं के रुख पर
नदी के साज़ पे मल्लाह गीत गाता है
तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले से
मिरी खुली हुई बाहों में झूल जाता है

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

मैं फूल टाकं रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में
तुम्हारी आँख मसर्रत से झुकती जाती है
ना जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ
ज़बान खुश्क है आवाज़ रूकती जाती है

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

मिरे गले में तुम्हारी गुदाज़ बाहें हैं
तुम्हारे होंटों पे मेरे लबों के साये हैं
मुझे यकीन है कि हम अब कभी ना बिछड़ेंगे
तुम्हें गुमाँ के हम मिल के भी पराये हैं

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

मिरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों को
अदा-ए-अज-ओ-करम से उठा रही हो तुम
सुहाग रात को ढोलक पे गाये जाते हैं
दबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम

अदा-ए-अज-ओ-करम= In very soft manner

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

वो लम्हे कितने दिलकश थे, वो घडियां कितनी प्यारी थीं
वो सहरे कितने नाज़ुक थे, वो लडियाँ कितनी प्यारी थीं
बस्ती की हर इक शादाब गली खाबों का जज़ीरा थी गोया
हर मौज-ए-नफस, हर मौज-ए-सबा, नगमों का ज़खीरा थी गोया

शादाब= Lively
जज़ीरा= टापू
मौज-ए-नफस= साँस की लहर
मौज-ए-सबा= हवा का झौंका
ज़खीरा= खजाना

नागाह लहकते खेतों से टापों की सदायें आने लगीं
बारूद की बोझल बू लेकर, पच्छम से हवायें आने लगीं
तामीर के रोशन चेहरे पर, तखरीब का बादल फ़ैल गया
हर गांव में वहशत नाच उठी हर शहर में जंगल फ़ैल गया
मगरिब के मुह्ज्ज्ब मुल्कों से, कुछ खाकी वर्दी-पोश आये
इठलाते हुए मगरूर आये, लहराते हुए मदहोश आये
खामोश ज़मीन के सीने में, खेमों की तनावें गड़ने लगीं
मक्खन सी मुलायम राहों पर, बूटों की खराशें पड़ने लगीं
फौजों के भयानक बैंड तले, चरखों की सदायें डूब गयीं
जीपों की सुलगती धूल तले, फूलों की कबायें डूब गयीं

नागाह= अचानक
सदायें= आवाजें
तामीर= Construction
तखरीब= Destruction
मगरिब= पश्चिम
मुह्ज्ज्ब= Civilized
मुल्कों= देशों
सदायें= Musical Sounds
कबायें= Dresses

इंसान की कीमत गिरने लगी, अजनास के भाव बढने लगे
चौपाल की रौनक घटने लगी, भर्ती के दफातर बढ़ने लगे
बस्ती के सजीले शोख जवां, बन बन के सिपाही जाने लगे
जिस राह से कम ही लौट सके, उस राह पे राही जाने लगे

अजनास= Goods, Commodities

इन जाने वाले दस्तों में गैरत भी गई, बरनाई भी
माँओं के जवाँ बेटे भी गए, बहनों के चहेते भाई भी

गैरत= Honour
बरनाई= जवानी

बस्ती पे उदासी छाने लगी, मेलों की बहारें खत्म हुईं
आमों की लचकती शाखों से, झूलों की कतारें खत्म हुईं

धूल उड़ने लगी बाज़ारों में, भूख उगने लगी खलियानों में
हर चीज़ दुकानों से उठकर, रू-पोश हुई तहखानों में

रू-पोश= छुपा दी गई

बद-हाल घरों की बद-हाली, बढते बढते जंजाल बनी
महंगाई बढकर काल बनी, सारी बस्ती कंगाल बनी

चरवाहियाँ रस्ता भूल गयीं, पिन्हारियां पनघट छोड़ गयीं
कितनी ही कंवारी अबलायें, माँ-बाप की चौखट छोड़ गयीं

इफ़लास-जदा दहकानों के, हल-बैल बिके, खलियान बिके
जीने की तमन्ना के हाथों, जीने ही के सब सामान बिके

इफ़लास-जदा= गरीबी के मारे
दहकानों= किसानों

कुछ भी ना रहा जब बिकने को, जिस्मों की तिजारत होने लगी
खल्वत में भी जो ममनूअ थी वो जलवत में जसारत होने लगी

तिजारत= खरीद बेच
खल्वत= अकेले में
ममनूअ= निषिद्ध, Prohibited
जलवत= खुलेआम
जसारत= दुस्साहस

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

तुम आ रही हो सर-ए-आम बाल बिखराए हुए
हज़ार गोना मलामत का बार उठाये हुए

मलामत= Accusations
बार= Weight

हवस-परस्त निगाहोँ की चीरा-दस्ती से
बदन की झेंपती उरिआनियाँ छुपाये हुए

हवस-परस्त= Lustful
चीरा-दस्ती= ताक-झाँक
उरिआनियाँ= Nakedness

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

मैं शहर जाके हर इक दर को झाँक आया हूँ
किसी जगह मेरी मेहनत का मोल मिल ना सका
सितमगरों के सियासी किमारखाने में
अलम-नसीब फरासत का मोल मिल ना सका

किमारखाने= जुआघर
अलम-नसीब फरासत= भाग्यहीन बुद्धिमत्ता

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

तुम्हारे घर में कयामत का शोर बरपा है
महाज़-ए-जंग से हरकारा तार लाया है
कि जिसका ज़िक्र तुम्हे जिंदगी से प्यारा था
वो भाई नर्गा-ए-दुश्मन में काम आया है

महाज़-ए-जंग= लड़ाई के मैदान से
हरकारा= Messenger
नर्गा-ए-दुश्मन= दुश्मन के घेरे में

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

हर एक गाम पे बदनामियों का जमघट है
हर एक मोड़ पे रुस्वाईओं के मेले हैं
न दोस्ती, न तकल्लुफ, न दिलबरी, न खलूस
किसी का कोई नहीं आज सब अकेले हैं

गाम= कदम
तकल्लुफ=औपचारिकता
खलूस= खुशी

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

वो रहगुजर जो मेरे दिल की तरह सूनी है
ना जाने तुमको कहाँ ले के जाने वाली है
तुम्हें खरीद रहे हैं ज़मीर के दुश्मन
उफ़क पे खून-ए-तमन्ना-ए-दिल की लाली है

उफ़क= क्षितिज
खून-ए-तमन्ना-ए-दिल= इच्छाओं का खून

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं

सूरज के लहू में लिथडी हुई, वो शाम है अब तक याद मुझे
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे

उस शाम मुझे मालूम हुआ, खेतों की तरह इस दुनिया में
सहमी हुई दोशीजाओं की मुस्कान भी बेची जाती है
उस शाम मुझे मालूम हुआ, इस कारगह-ए-ज़रदारी में
दो भोली भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है

दोशीजाओं= जवान लड़कियों
कारगह-ए-ज़रदारी= पूंजीप्रधान व्यवस्था


उस शाम मुझे मालूम हुआ, जब बाप की खेती छिन जाये
ममता के सुनहरे ख्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
उस शाम मुझे मालूम हुआ, जब भाई जंग में काम आये
सरमाये के क़हवाखाने में, बहनों की जवानी बिकती है

सरमाये= समाज
क़हवाखाने= वेश्यालय

सूरज के लहू में लिथडी हुई, वो शाम है अब तक याद मुझे
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे

तुम आज हजारों मील यहाँ से दूर कहीं तनहाई में
या बज़्म-ए-तरब-आराई में
मेरे सपने बुनती होगी, बैठी आगोश पराई में

बज़्म-ए-तरब-आराई= आनन्ददायक महफिल में

और मैं सीने में गम ले कर, दिन रात मशक्कत करता हूँ
जीने की खातिर मरता हूँ
अपने फन को रुसवा करके, अगियार का दामन भरता हूँ

मशक्कत= मेहनत
अगियार = दुश्मन

मजबूर हूँ मैं, मजबूर हो तुम, मजबूर ये दुनिया सारी है
तन का दुःख मन पर भारी है
इस दौर में जीने की कीमत या दार-ओ-रसन या ख्वारी है

दार-ओ-रसन=फांसी
ख्वारी= शर्म

मैं दार-ओ-रसन तक जा ना सका, तुम जहद की हद तक आ ना सकीं
चाहा तो मगर अपना ना सकीं
हम-तुम दो ऐसी रूहें हैं, जो मंजिल-ए-तस्कीन पा ना सकीं

जहद= संघर्ष
मंजिल-ए-तस्कीन = चैन की मंजिल

जीने को जिए जाते हैं मगर, साँसों में चितायें जलती हैं
खामोश वफायें जलती हैं
संगीन हकायक-जारों में, ख्वाबों की रिदायें जलती हैं

संगीन= मुश्किल, गम्भीर
हकायक-जारों= वास्तविकताओं में
रिदायें= Covers

और आज इन पेड़ों के नीचे, फिर दो साये लहराए हैं
फिर दो दिल मिलने आये हैं
फिर मौत की आंधी उठी है, फिर जंग के बादल छायें हैं


मैं सोच रहा हूँ इनका भी, अपनी ही तरह अंजाम ना हो,
इनका भी जूनुं बदनाम ना हो
इनके भी मुकद्दर में लिखी, इक खून में लिथडी शाम ना हो


सूरज के लहू में लिथडी हुई, वो शाम है अब तक याद मुझे
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे


हमारा प्यार हवादिस की ताब ला ना सका
मगर इन्हें तो मुरादों की रात मिल जाये
हमें तो कश-म-कश-ए-मर्ग-ए-बे-अमाँ ही मिली
इन्हें तो झूमती गाती हयात मिल जाये

हवादिस= घटनायें
ताब= साहस, heat, fury
कश-म-कश-ए-मर्ग-ए-बे-अमाँ=Struggles of continuing death
हयात= ज़िदंगी

बहुत दिनों से है ये मशगला सियासत का
के जब जवान होँ बच्चे तो क़त्ल हो जायें
बहुत दिनों से है ये खब्त हुक्मरानों का
के दूर दूर के मुल्कों में कहत बो जायें

मशगला= आदत, शौंक
खब्त= पागलपन
हुक्मरानों= जो सत्ता में है
कहत=अकाल, Destruction

बहुत दिनों से जवानी के ख्वाब वीरां हैं
बहुत दिनों से मुहब्बत पनाह ढूँढती है
बहुत दिनों से सितम-दीदा शाहराहों में
निगार-ए-जीस्त की इस्मत पनाह ढूँढती है

सितम-दीदा= जुल्म से भरे
शाहराहों= राजपथों
निगार-ए-जीस्त= जीवन की खूबसूरती
इस्मत=पवित्रता, सम्मान

चलो के आज सभी पाय-माल रूहों से
कहें के अपने हर इक ज़ख्म को ज़वाँ कर लें
हमारा राज़ हमारा नहीं सभी का है
चलो के अपने हर इक ज़ख्म को ज़वाँ कर लें

पाय-माल=कुचली हुई

चलो के चल के सियासी मुकामिरों से कहें
के हमको जंग-ओ-जदल के चलन से नफरत है
जिसे लहू के सिवा कोई रंग ना रास आये
हमें हयात के उस पैरहन से नफरत है

मुकामिरों=जुएबाजों
जदल= लड़ाई
हयात= जीवन
पैरहन= वस्त्र, Dress

कहो के अब कोई कातिल अगर इधर आया
तो हर क़दम पे ज़मीन तंग होती जायेगी
हर एक मौज-ए-हवा रुख बदल के झपटेगी
हर एक शाख रग-ए-संग होती जायेगी

मौज-ए-हवा= हवा की लहर
रग-ए-संग= चट्टान की रग या नस

उठो के आज हर इक जंगजू से ये कह दें
के हमको काम की खातिर कलों की हाजत है
हमें किसी की ज़मीन छीनने का शौक़ नहीं
हमें तो अपनी ज़मीन पर हलों की हाजत है

जंगजू= युद्ध के व्यापारी
हाजत= जरूरत

कहो के अब कोई ताजिर इधर का रुख ना करे
अब इस जा कोई कुँवारी ना बेची जायेगी
ये खेत जाग पड़े, उठ खड़ी हुईं फसलें
अब इस जगह कोई क्यारी ना बेची जायेगी

ताजिर= व्यापारी

ये सरजमीं है गौतम की और नानक की
इस अर्ज-ए-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी
हमारा खून अमानत है नस्ल-ए-नौ के लिए
हमारे खून पे लश्कर ना पल सकेंगे कभी

अर्ज-ए-पाक= पवित्र धरती
नस्ल-ए-नौ= नई पीढ़ी

कहो की आज भी हम सब अगर खामोश रहे
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं
जुनूं की ढाली हुई एटमी बलाओं से
ज़मीं की खैर नहीं, आसमाँ की खैर नहीं

खाकदाँ= दुनिया
जुनूं= पागलपन
एटमी= Atomic


गुजिश्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार
अजब नहीं के ये तन्हाईयाँ भी जल जायें
गुजिश्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार
अजब नहीं के ये परछाईयाँ भी जल जायें

गुजिश्ता= पिछली
पैकर= शरीर

तसव्वुरात की परछाईयाँ उभरती हैं