July 2, 2011

दिन टेसू के फूलों वाले

दिन
टेसू के फूलों वाले कब आयेंगे
पता नहीं

दरस-परस की
नहीं रही अब अपने बस की
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
आम-गुलमोहर
चैती-आल्हा कब गायेंगे
पता नहीं

आबोहवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महाहाट से
सपने साहू कब लायेंगे
पता नहीं

वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं है
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के
शीतल-जल मेघा कब छायेंगे
पता नहीं

दिन
टेसू के फूलों वाले कब आयेंगे
पता नहीं

कुमार रवीन्द्र

चिड़िया और आसमान

चिड़िया वाले
हमारे पास है एक चिड़िया
और एक पेड़ भी.
बस थोड़ा सा आसमान दे दो
दो कौड़ी का.


ओरहान वेली

होना उदास

नाराज हो सकता था मैं भी उनसे
जिनसे करता हूँ मुहब्बत
गर मुहब्बत ने सिखा न दिया होता
होना और रहना उदास.


ओरहान वेली

बहुमत जो उदास है

अल्पसंख्यक नहीं
मैं दुनिया के बहुमत से वास्ता रखता हूँ
बहुमत
जो उदास है
खामोश है
प्यासा है इतने चश्मो के बावजूद 




सुरजीत पातर

तलाश

मुझे वो शहर पता नहीं
किस दिन मिलेगा?
 वो शहर
जो दूर क्षितिज से पार बसता है
जहाँ गहरे नीले पानी की झील में
सपनों के हंस तैरते हैं
जहाँ ज़िंदगी
गुलाब की तरह महकती है
जहाँ दरिया
कभी न खत्म होने का
गीत गाता है...
मैं कई जन्मों से
उस शहर की तलाश में हूँ
मुझे वो शहर पता नहीं
किस दिन मिलेगा?
मैं कई जन्मों से
उस शहर की तलाश में हूँ

उसको खोजते-खोजते
ज़िंदगी उस सपने की तरह हो गई है
 जिसमें हम बस
चलते ही जाते हैं
पहुँचते कहीं भी नहीं।
ज़िंदगी उस सपने की तरह हो गई है
जिसमें हम बस
चलते ही जाते हैं
पहुँचते कहीं भी नहीं।




कमल