May 27, 2008

हम भूल गए हों ऐसा भी नहीं

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं

सौदा = पागलपन
तर्क-ए-मोहब्बत = मोहब्बत का टूटना

यूं तो हंगामें उठाते नहीं दीवाना-ए-इश्क
मगर ए दोस्त ऐसों का कुछ ठिकाना भी नहीं

मुद्दतें गुज़रीं तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

ये भी सच है के मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है के तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं

दिल की गिनती ना यगनों में ना बेगानों में
लेकिन इस जल्वागाह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं

यगना = जानकार
जल्वागाह = यहाँ कोई कार्यक्रम हो रहा हो

बदगुमां हो के मिल ए दोस्त जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं

बदगुमां = बिना शक

शिकवा-ए-ज़ौर करे क्या कोई उस शोख से जो
साफ कायल भी नहीं साफ मुकरता भी नहीं

शिकवा-ए-जौर = जुल्म कि शिकायत

मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ए दोस्त
आह मुझसे तो मेरी रंजिश-ए-बेजाँ भी नहीं

बात ये है की सुकून-ए-दिल-ए-वहशी का मकाम
कुञ्ज-ए-जिन्दां भी नहीं वुसात-ए-सेहरा भी नहीं

मकाम = मंजील
कुञ्ज-ए-जिन्दां = जेल का कोना
वुसात-ए-सेहरा = रेगिस्तान का विस्तार

मुंह से हम अपने बुरा तो नहीं कहते , के 'फिराक'
है तेरा दोस्त मगर आदमी अच्छा भी नहीं

फ़िराक गोरखपुरी

4 comments:

समयचक्र said...

ये भी सच है के मोहब्बत में नहीं मैं मजबूर
ये भी सच है के तेरा हुस्न कुछ ऐसा भी नहीं
फिराक गोरखपुरी की रचना हम सभी को बांटने के लिए धन्यवाद

Dr. Ravindra S. Mann said...

regards

राज भाटिय़ा said...

मैं भी गुम हूँ, मेरे अल्फाज भी गुम ,
खो गया ख़ुद आवाज लगाने वाला
रविन्द्र मान जी आप के सारे शेर बहुत ही अच्छे लगे, धन्यवाद,
आप से एक प्राथना हे आप **comments ** का रंग बदल दे क्योकि सफ़ेद के उपर कमेट भी सफ़ेद रंग मे दिखता हे, ओर कमेंट देने वाले को यह ना मिले तो आगे चला जाता हे,ओर यह सफ़ेद रंग मे कम ही दिखता हे. धन्यवाद

Dr. Ravindra S. Mann said...

Bhatia ji ,bahut bahut dhanyavaad. Regards.