March 3, 2008

अफसाना

मेरे रोने का जिसमे किस्सा है ,
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।

अज्ञात

बात बढ़ कर फ़साना बनती है,
बात सुनता नहीं है जब कोई।

राही कुरैशी

खैर इन बातों में क्या रखा है,किस्सा ख़त्म कर,
मैं तुझे हमदर्द समझा था ये मेरी भूल थी।

रशीद अफरोज

यूँ ही जरा खामोश जो रहने लगे हैं हम,
लोगों ने कैसे कैसे फसाने बना लिये।

रजिया बेगम ख्वाजा

रात कम है ना छेड़ हिज्र की बात ,
ये बड़ी दास्ताँ है प्यारे।

हफीज जालंधरी

तुम ही ना सुन सको अगर किस्सा--गम सुनेगा कौन,
किसकी जबान खुलेगी फिर हम ना अगर सुना सके।

हफीज जालंधरी

कहतें हैं जवानी की कहानी जो कभी ,
पहले हम देर तलक बैठ के रो लेते हैं।

शाद अजीमाबादी

कहके ये फेर लिया मुंह मेरे अफसाने से,
फायदा रोज कही बात के दोहराने से।

फहीम गोरखपुरी

हमारी दास्ताँ शहरों की दीवारों पे चस्पां है,
हमें ढूंढेगी दुनिया कल पुराने इश्तहारों में.

अजीज बानो

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